मानस सिन्हा ने आगे लिखा कि यह चौथी बार है, जब पार्टी ने उन्हें अपमानित किया है। बर्दाश्त करने की मेरी भी एक क्षमता है और अब यह महसूस होता है कि बर्दाश्त करने की सारी सीमाएं पार हो चुकी हैं। अब तक मैं कांग्रेस के लिए सोच रहा था, लेकिन अब मैं सिर्फ अपने लिए सोचूंगा। इसलिए, मैं कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा देता हूं।
पिछली गलतियों से सीख लेकर कांग्रेस ने हवा-हवाई उम्मीदवारों से बनाई दूरी
कांग्रेस ने पिछले चुनाव की गलतियों से सीख लेते हुए उम्मीदवारों के चयन का तरीका बदला है और इस विधानसभा चुनाव में आसमानी उम्मीदवारों से दूरी बनाई गई है। अचानक से चुनावी सीन में टपकनेवाले उम्मीदवारों को इस बार दूर ही रखा गया है।
इस तरह कांग्रेस को हुआ था गलती का एहसास
ऐसे मामलों की जांच के क्रम में पाया गया कई ऐसे नेताओं को टिकट मिल गया जिन्हें आम जनता कम ही जानती थी। काईकमान के निर्देश पर सीधे इनकी लैंडिंग हुई थी। ऐसे नेताओं ने जमशेदपुर से लड़ने वाले गौरव वल्लभ प्रमुख रहे।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के इस प्रवक्ता की जमानत जब्त होने के बाद समीक्षा हुई तो कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास हुआ। इसी प्रकार भवनाथपुर से मैदान में उतारे गए उम्मीदवार केपी यादव रहे।
यादव की जमानत जब्त होने के बाद झामुमो ने कांग्रेस के ऊपर दबाव बनाया और यह सीट गठबंधन से झामुमो के हिस्से में चली गई। इसी प्रकार कांग्रेस के हाथ से जमुआ विधानसभा की सीट भी निकल गई। गठबंधन में अपने हिस्से की दो सीटें गंवाने के बाद कांग्रेस को झटका लगा और पार्टी ने रणनीति बदली।
2019 के विधानसभा चुनाव के कुछ पहले हुए लोकसभा चुनाव में धनबाद सीट से कीर्ति झा आजाद को उतारा गया था, जिनकी जमानत भी जब्त हो गई थी। इन्हीं गलतियों से सबक लेते हुए पार्टी ने अब रणनीतिक बदलाव किया है।
इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिन्हें जमीनी स्तर पर आम कार्यकर्ताओं से लेकर मतदाता तक पहचानते हैं और अभी तक 30 में से 28 सीटें वैसी ही हैं। धनबाद और बोकारो की दो सीटों पर पार्टी ने किसी उम्मीदवार को अभी तक उतारा नहीं है।