राज्य में प्रमोशन से नहीं अब ऐसे होगी 50 प्रतिशत प्रधानाचार्यों की नियुक्ति

प्रधानाचार्य के पदों के रिक्त रहने के पीछे शिक्षा के प्रति सरकार की ढुलमुल और अनियोजित नीतियां भी जिम्मेदार हैं। दरअसल, प्रधानाचार्य पद का फीडर कैडर हाईस्कूल का हेडमास्टर होता है, और अब तक यह शत प्रतिशत प्रमोशन का पद रहा है। लेकिन, राज्य में हाईस्कूलों की संख्या 932 है और इंटर कालेज संख्या 1383 हो चुकी है। प्रधानाचार्य के पद पर प्रमोशन के लिए हेडमास्टर के रूप में पांच साल की सेवा अनिवार्य है।

प्रधानाचार्य के 50 फीसदी पदों को विभागीय परीक्षा से भरने के फैसले से राज्य के सरकारी इंटर कालेजों को समय पर स्थायी मुखिया मिलने लगेंगे। पिछले कई साल से स्थायी प्रिंसिपल की कमी की वजह से इंटर कालेज स्तर पर जहां प्रशासनिक पक्ष कमजोर पड़ रहा था। वहीं शैक्षिक स्तर भी प्रभावित हो रहा है। स्थायी प्रधानाचार्य नियुक्त होकर आने वाले शिक्षक अधिक जिम्मेदारी के साथ स्कूल में काम कर पाएंगे।

पात्र हेडमास्टर न मिलने के कारण इंटर कालेज प्रधानाचार्य के पर जुगाड़ व्यवस्था से काम चलाया जा रहा है। इस वक्त प्रधानाचार्य के 932 पद लंबे समय से रिक्त हैं। नई व्यवस्था से 466 पदों के जल्द भरने की उम्मीद बंधी है।

शिक्षा सचिव रविनाथ रमन के अनुसार ये भर्ती लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जाएगी। हेडमास्टर और प्रवक्ता इसके पात्र होंगे। प्रधानाचार्य अपेक्षाकृत युवा होंगे और लंबे समय तक प्रधानाचार्य पद पर रहेंगे। फैसले के बाद स्कूलों में प्रधानाचार्यों के मिलने की आस बंधी है।

देहरादून। प्रधानाचार्य के रिक्त पदों पर सीधी भर्ती में केवल हेडमास्टर और प्रवक्ता को ही मौका दिए जाने से एलटी शिक्षक नाराज हैं। एलटी कैडर शिक्षकों ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जाहिर की है। उनका कहना है कि सरकार ने एलटी कैडर की उपेक्षा की है। राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश प्रवक्ता प्रकाश सिंह चौहान ने कहा कि हेडमास्टर का पद एलटी और प्रवक्ता का संयुक्त पद है। 55 और 45 प्रतिशत के अनुपात के साथ एलटी और प्रवक्ता का चयन किया जाता है।

प्रधानाचार्य के पदों पर केवल हेडमास्टर और प्रवक्ता को ही मौका दिया जाना सरासर गलत है। यह प्राकृतिक न्याय भी नहीं है। सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। वर्ना एलटी कैडर शिक्षकों को हाईकोर्ट की शरण लेनी होगी। शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष मुकेश प्रसाद बहुगुणा के अनुसार शिक्षण का अनुभव और अकादमिक योग्यता रखने वाले हर शिक्षकों को इस चयन परीक्षा में शामिल होने का मौका मिलना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो यह अनावश्यक अदालती वाद का विषय बन जाएगा।

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