नैनीताल की झीलें तेजी से प्रदूषित हो रही हैं। नैनीझील, भीमताल, सातताल, कमलताल और नौकुचियाताल के पानी में शामिल तत्व मानक के अनुरूप नहीं मिले हैं। कुमाऊं विवि के नैनो साइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी सेंटर के शोध में ये चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। इन झीलों पर नैनीताल जिले की बड़ी आबादी पेयजल के लिए भी निर्भर है।
इससे सेहत से जुड़ी चिंताएं भी बढ़ गई हैं। शोधकर्ताओं का कहना है यदि इस पर जल्द नियंत्रण नहीं किया तो स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है। कुमाऊं विवि का नैनो साइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी सेंटर, भारत सरकार के एक प्रोजेक्ट के तहत 2018-19 से नैनीताल की झीलों पर शोध कर रहा है।
सेंटर के प्रभारी प्रो. एनजी साहू और शोधार्थी चेतना तिवारी बताते हैं कि उन्होंने नैनी झील, भीमताल, नौकुचियाताल, सातताल और कमलताल का चार सालों में गहनता से अध्ययन किया है। सभी झीलों में आयरन और लेड की मात्रा मानक से ज्यादा है। सामान्य तौर पर प्रति लीटर 0.05 मिग्रा लेड होना चाहिए।
लेकिन नैनीताल की झीलों में लेड मानक से अधिक 0.06 से 0.08 मिग्रा प्रति लीटर पाई गई है। आयरन के सूक्ष्म कण भी इसी अनुपात में मानक से ज्यादा मिले हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि पानी में लेड और आयरन की अधिकता से पेट, से संबंधित बीमारियां होती हैं।
आयरन और लेड की बढ़ रही मात्रा शोध का विषय
विशेषज्ञों के अनुसार पर्वतीय क्षेत्रों की इन झीलों के पानी में लोहे के कण (आयरन) व कांच (लेड) की उपस्थिति बढ़ना चिंता के साथ ही शोध का भी विषय है। पहाड़ में न तो औद्योगिक गतिविधियां हैं, और न ही आयरन और सीसे के उद्योग मौजूद हैं। ऐसे में लगातार बढ़ रही आयरन व लेड की मात्रा के कारणों को लेकर अनुसंधान बेहद जरूरी है। साथ ही इसको लेकर स्थानीय नगर पालिकाएं एवं प्रशासन की ओर से त्वरित कदम उठाए जाने चाहिए।