उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा चेहरा बन चुके अजय भट्ट लगातार ऊंचाइयों पर पहुंचते रहे। प्रतिद्वंद्वियों को अपनी सियासी चतुराई से मात देने वाले अजय हमेशा जनमुद्दों को लेकर मुखर रहे। हर स्तर पर आवाज बुलंद की।
संसद में पहुंचते ही सबसे पहले उन्होंने 48 वर्ष पुरानी जमरानी बांध परियोजना को लेकर सवाल उठाया। इसकी उपयोगिता गिनाई और जल्द इसके निर्माण की वकालत की।
निर्माण हुआ शुरू
उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा चेहरा बन चुके अजय भट्ट लगातार ऊंचाइयों पर पहुंचते रहे। प्रतिद्वंद्वियों को अपनी सियासी चतुराई से मात देने वाले अजय हमेशा जनमुद्दों को लेकर मुखर रहे। हर स्तर पर आवाज बुलंद की।
संसद में आवाज उठाने का नतीजा है कि आज परियोजना निर्माण के शुरुआती चरण तक पहुंच चुकी है। हल्द्वानी व आसपास की विधानसभा सीटों से लेकर नैनीताल-ऊधम सिंह नगर लोकसभा सीट के लिए जमरानी बांध एक बड़ा सियासी मुद्दा बना रहा।
जमरानी बांध का मुद्दा रहा चर्चा में
जमरानी बांध भले ही अभी तक निर्मित नहीं हुआ, लेकिन कई नेता इस बांध के सियासी बहाव में बहते रहे और मंजिल तक पहुंचे। कोई विधानसभा पहुंचा तो कोई संसद। क्योंकि जन से जुड़ा मुद्दा था ही ऐसा। इससे हल्द्वानी, लालकुआं जैसे बड़ी आबादी को बड़ी उम्मीद है। इससे प्यास बुझनी है। सिंचाई की सुविधा मिलनी है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों को सिंचाई के लिए पेयजल उपलब्ध होना है।
1976 को हुआ था बांध का शिलान्यास
दुर्भाग्य है कि योजना धरातल पर नहीं उतर रही थी। सरकारें आती और जाती रहीं, लेकिन बांध वहीं का वहीं रह गया। जबकि 26 फरवरी, 1976 को शिलान्यास भी कर दिया गया था। इस शिलान्यास कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा मंत्री केसी पंत थे और अध्यक्षता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने की थी। तब शहर में कई नहरें भी बन गई। आंदोलन होते रहे।
अजय भट्ट ने संसद में उठाया था मुद्दा
अजय भट्ट ने संसद में पहुंचते ही पहला सवाल जमरानी बांध को लेकर उठाया। वह लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे। 28 फरवरी को कुमाऊं संभाग कार्यालय में पत्रकारों से वार्ता में भट्ट ने जमरानी बांध को जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना।