महानगर के पश्चिमांचल में लगभग सात एकड़ परिक्षेत्र में अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गरिमा का उद्घोष करता सूर्यकुंड धाम विद्यमान है। यह स्थल त्रेता युग से कलयुग तक के कई ऐतिहासिक कालखंडों का मूक साक्षी है। मान्यता है कि राज्य भ्रमण के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम यहां आए थे।
इसी स्थल पर भगवान श्रीराम ने विश्राम किया था। यहां सात कुंडों वाले सरोवर में स्नान करने के पश्चात पिंड स्थापित कर भगवान सूर्यदेव की उपासना की थी। कहा जाता है कि भगवान सूर्य प्रकट हुए और श्रीराम ने उन्हें दीपदान किया था। तभी से इसे सूर्यकुंड धाम के नाम से जाना जाता है।
भगवान श्रीराम ने की थी सूर्य कुंड की स्थापना
कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम और सूर्यवंशियों द्वारा सूर्य कुंड की स्थापना की गई। यमुनोत्री, हरियाणा, दिल्ली, बिहार, अयोध्या और बहराइच समेत भारत के 26 सूर्य कुंडों में से एक गोरखपुर का सूर्य कुंड भी है। यह त्रेता युग में अचिरावती (राप्ती) नदी के किनारे स्थित था।
श्रीराम ने की थी भगवान सूर्य की उपासना
भगवान श्रीराम ने जहां पिंड स्थापित कर भगवान सूर्य की उपासना की थी, वहां बाद में सूर्य मंदिर बनवा दिया गया। कुछ दशकों पूर्व तक इस धाम में भव्य सरोवर के साथ-साथ 52 मंदिर हुआ करते थे। अधिकतर मंदिर अतिक्रमण और अवैध कब्जों की भेंट चढ़ गए। वर्तमान में केवल 18 मंदिर शेष हैं।
लोगों ने किया जमीन पर कब्जा
माना जा रहा है कि सरोवर का लगभग आधा हिस्सा लोगों ने कब्जा कर रखा है, उन कब्जों के नीचे अनेक मंदिरों के होने की बात कही जाती है। ऐसा माना जा रहा है कि आज भी यहां भगवान के मंदिरों के साक्ष्य हैं।
राजा राम के आने की यादों को समेटे है गोरखपुर
आज जब पांच सौ साल बाद भगवान श्रीराम अयोध्या में अपने घर में विराजमान होने जा रहे हैं, तो गोरखपुर का सूर्य कुंड धाम राजा राम के आगमन की यादों को ताजा कर रहा है। वहां तीन दिन से सूर्यकुंड धाम विकास समिति के तत्वावधान में श्रीरामोत्सव चल रहा है, जो अयोध्या में श्री रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के दिन तक चलेगा। सुंदरकांड पाठ व श्रीराम महायज्ञ समेत अनेक धार्मिक अनुष्ठान चल रहे हैं।
1980 से 2017 तक बदली तस्वीर
- वर्ष 1980 से 1990 के बीच यहां अवैध कब्जों की बाढ़ आ गई। भूमाफिया इस पूरे तीर्थ स्थल का स्वरूप बदलकर बेचने का प्रयास करने लगे।
- भूमाफिया ने एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सरोवर के पश्चिम तरफ का बांध काटकर इसमें जमा पानी बहा दिया और पोखरा सूख गया।
- 1990 से 1993 तक यह खेल मैदान हो गया और इसकी नई पहचान तालकटोरा स्टेडियम के रूप में हो गई। इसमें क्रिकेट और बैडमिंटन के मैच होने शुरू हो गए।
- जब भूमाफिया ने क्रिकेट के खेल को भी बंद कराकर सरोवर को पाटने की प्रक्रिया शुरू की तो उस समय क्रिकेट टीम का नेतृत्व कर रहे संतोष मणि त्रिपाठी ने इसका विरोध किया।
- स्थानीय नागरिकों को साथ लेकर सूर्यकुंड धाम विकास समिति गठित कर उन्होंने सरोवर को बचाने के लिए संघर्ष शुरू किया।
- समिति ने सरोवर में जल भराव कराकर 17 महिलाओं के साथ वर्ष 1993 में पहली बार छठ पर्व का आयोजन किया।
- 1999 में समिति ने सूर्य कुंड मंदिर पर आमरण अनशन शुरू किया, इसके बाद जिला प्रशासन ने सीमांकन कर अवैध कब्जे हटाने की प्रक्रिया शुरू की।
- वर्ष 2005 में पर्यटन विभाग ने सात लाख की लागत से सूर्य मंदिर प्रांगण, मुख्य द्वार से अंदर बाएं तरफ पार्क और लक्ष्मी नारायण मंदिर में मार्बल लगवाया।
- 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर पर्यटन मंत्रालय ने दो करोड़ 60 लाख रुपये से सरोवर का सुंदरीकरण कराया।
नई पहचान दिलाना है लक्ष्य
इस तीर्थ स्थल को विश्व पर्यटन केंद्र बनाए जाने तक संघर्ष जारी रहेगा। सरोवर का काफी हिस्सा कब्जे से खाली करा लिया गया है। जो बचा है उसे भी जिला प्रशासन की मदद से खाली कराया जाएगा। इसके लिए पिछले 10 साल से हर रविवार को धाम की सफाई व सूर्य मंदिर पर यज्ञ कर सत्याग्रह किया जा रहा है। संतोष मणि त्रिपाठी, संयोजक सूर्यकुंड धाम विकास समिति
आदिकाल से रही सती परंपरा
- पवित्र स्थल और नदी का किनारा होने के कारण यहां आदिकाल से सती परंपरा विद्यमान रही है। वर्तमान में धाम परिसर में मौजूद असंख्य सती मंदिरों के भग्नावशेष इसकी पुष्टि करते हैं।
- सूर्य नारायण, लक्ष्मी नारायण, भगवान शिव व सती मंदिरों में आज भी पूजा होती है। यहां दीपदान की परंपरा अति प्राचीन है।
- छठ पर्व, नाग पंचमी, पूरे सावन व महाशिवरात्रि पर व हर माह के शुक्रवार को भगवान शिव की भस्म आरती की जाती है।